हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बांग्लादेश की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ पर बांग्लादेश की यात्रा को ‘तृणमूल कांग्रेस’ ने आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) का उल्लंघन बताते हुये चुनाव आयोग से शिकायत की है।
बांग्लादेश के विदेश दौरे की यात्रा को ‘तृणमूल कांग्रेस’ ने पश्चिम बंगाल के चुनावी फायदे के साथ जोड़ा है और अप्रत्यक्ष रूप से आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करना बताया है।
आदर्श आचार संहिता से तात्पर्य-
चुनावों के लिए आदर्श आचार संहिता राजनीतिक दलों एवं प्रत्याशियों के लिये बनायी गयी एक नियमावली है, जिसका पालन चुनाव के समय आवश्यक रूप से करना होता है।
चुनाव आचार संहिता चुनाव की तिथि की घोषणा से लागू होता है और यह मतदान के परिणाम आने पर समाप्त हो जाता है।
आदर्श आचार संहिता दरअसल वे दिशा-निर्देश हैं, जिन्हें सभी राजनीतिक पार्टियों को मानना होता है। इनका मकसद चुनाव प्रचार अभियान को निष्पक्ष एवं साफ-सुथरा बनाना और सत्ताधारी राजनीतिक दलों को गलत फायदा उठाने से रोकना है।
आदर्श आचार संहिता का उदभव या विकास-
भारत के संविधान के अनुच्छेद-324 में निर्वाचन आयोग को संसद और राज्य विधानसभाओं के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की शक्ति प्रदान की गयी है। हालांकि आदर्श आचार संहिता संविधान में वर्णित नहीं है,अपितु यह एक क्रमशः प्रक्रिया का परिणाम है।
सर्वप्रथम वर्ष 1960 के केरल विधानसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता का जिक्र किया गया था और बताया गया कि क्या करें और क्या न करें।
वर्ष 1960 के बाद वर्ष 1962 के लोकसभा आम चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने इस संहिता को सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों में वितरित किया। इसके बाद 1967 के लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में पहली बार राज्य सरकारों से आग्रह किया गया कि वे राजनीतिक दलों से इसका अनुपालन करने को कहा।
वर्तमान में आदर्श आचार संहिता का आधार-
वर्तमान में आदर्श आचार संहिता का कोई विशिष्ट वैधानिक आधार नहीं है। हालांकि, वैधानिक आधार न होने पर भी निर्वाचन आयोग द्वारा इसे लागू किया जाता है।
वर्तमान में “चुनावी नैतिकता के नियम” ही आदर्श आचार संहिता के आधार है।
आदर्श आचार संहिता का उद्देश्य-
भारत एक लोकतान्त्रिक देश है और लोकतन्त्र की अवधारणा किसी देश में होने वाले स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों पर आधारित है। अत: आदर्श आचार संहिता का उद्देश्य देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को आयोजित करवाना या स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को सुनिश्चित करना है।
आदर्श आचार संहिता के अंतर्गत प्रावधान-
राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के द्वारा जाति, धर्म व क्षेत्र से संबंधित मुद्दे न उठाना।
चुनाव के दौरान सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग न करना।
एग्जिट पोल के प्रकाशन पर रोक।
चुनाव के दौरान धन-बल और बाहु-बल का प्रयोग न करना।
चुनाव के दौरान बङी मात्रा में नगदी लेकर चलने पर रोक।
सरकार के द्वारा लोक लुभावन घोषणाएँ नही करना।
सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक निर्वाचन आयोग के तहत आ जायेगे और सरकार का इन पर किसी प्रकार का प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं होगा।
सरकारी पदों पर तैनात लोगों को सरकारी दौरे में चुनाव प्रचार करने की इजाजत पर रोक रहेगी।
सरकारी पैसे के इस्तेमाल से विज्ञापन जारी करने पर रोक।
चुनाव प्रचार के दौरान किसी की उम्मीदवार के निजी जीवन का ज़िक्र करने पर पाबंदी।
सांप्रदायिक भावनाएँ भड़काने वाली कोई अपील करने पर भी पाबंदी।
सरकार के किसी हैलीपैड, मीटिंग ग्राउंड, सरकारी बंगले, सरकारी गेस्ट हाउस जैसी सार्वजनिक जगहों पर उम्मीदवारों का कब्ज़ा नहीं होगा।
निष्कर्ष-
आदर्श आचार संहिता चुनाव सुधारों से जुड़ा एक अहम् मुद्दा है, जिससे चुनाव सुधारों का रास्ता खुलता है मगर इसका वैधानिक आधार नहीं होना इसकों कमजोर बना देता है और चुनाव आयोग को एक प्रतिबंधित शक्ति प्रदान करता है।
निष्कर्षत: सरकार को सर्वदल सहमति से इस आदर्श आचार संहिता को वैधानिक करने के लिए अधिनियम पारित करना चाहिए ताकि चुनाव आयोग और चुनाव दोनों सही मायने में लोकतान्त्रिक हो सके।