सुर्ख़ियों में- A Dipole World and the location of Intermediate Powers
- हाल ही में निर्मित होती द्विध्रुवीय विश्व (संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन) अवधारणा के बाद वैश्विक मंचों पर मध्यवर्ती शक्तियों का स्थान महत्वपूर्ण हो गया है।
- वैश्विक मंचों पर मध्यवर्ती शक्तियों का प्रतिनिधित्व भारत, ईरान, तुर्की, रूस व जापान द्वारा किया जा रहा है।
- विश्व शक्तियों के आधार पर विश्व में तीन प्रकार की शक्ति केन्द्रित प्रणालियाँ होती है अर्थात विश्व व्यवस्था को तीन भागों में बाटा जा सकता है-
- एकध्रुवीयता- जब विश्व में शक्ति का केवल एक ही ध्रुव हो जैसे वर्ष 1991 से वर्तमान समय तक संयुक्त राज्य अमेरिका, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में सिद्धांतकारों के बीच यह व्यापक रूप से माना जाता है कि शीत युद्ध के बाद की अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली एकध्रुवीय हो गयी है।
- द्विध्रुवीयता- जब विश्व में शक्तियों के दो ध्रुव हो जैसे वर्ष 1991 से पहले संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ का शक्ति के रूप में होना। वर्तमान में कुछ देश व्यापक रूप से यह मानने लगे है कि चीन अब दूसरा ध्रुव है।
- बहुध्रुवीयता- जब विश्व में शक्तियों के तीन या अधिक शक्ति केंद्र हो तो उसे बहुध्रुवीयता कहा जाता है। बहुध्रुवीयता शक्ति का एक वितरण है जिसमें दो से अधिक राष्ट्र के विश्व में लगभग समान मात्रा में सैन्य, सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभाव प्रबल होते हैं।
- शीत युद्ध के समय विश्व दो शक्तियों या ध्रुवों में बटा था जिनमें एक शक्ति का प्रतिनिधित्व संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा और दूसरी शक्ति का प्रतिनिधित्व सोवियत संघ द्वारा किया जा रहा था। सोवियत संघ के विघटन के बाद विश्व में केवल एक मात्र शक्ति के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका रह गया था। अत: विश्व एक ध्रुवीय हो गया।
- हाल के वर्षों में चीन के बढ़ते वैश्विक ऊभार के बाद विश्व दो शक्तियों या ध्रुवों में बटता नजर आ रहा है। वर्तमान में चीन की बढती महत्वाकांक्षा के परिणामस्वरूप अमेरिका के एकध्रुवीय स्थान को चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

द्विध्रुवीय विश्व अवधारणा में मध्यवर्ती शक्तियों का स्थान-
- वर्तमान में बढ़ती द्विध्रुवीय विश्व अवधारणा ने मध्यवर्ती देशों का स्थान महत्वपूर्ण बना दिया है, क्योंकि ये देश शक्ति के ध्रुवों के साथ जुड़कर शक्ति के संतुलन को सीधे रूप से प्रभावित करेगे।
- भारत स्वयं को एशिया तक सिमित नहीं रखना चाहता, भारत खुद को विश्व शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है।
- भारत स्वयं को किसी देश का सहयोगी राष्ट्र नहीं मानता क्योंकि भारत खुद की स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण करता है।
- भारत विश्व के बहुध्रुवीय स्वरूप का समर्थन करता है और एक ध्रुव के रूप में खुद को देखता है।
- अमेरिका के लिए भारत वर्तमान में चीन की महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रित करने में सहायक सिद्ध हो सकता है क्योंकि भारत की भौगोलिक अवस्थिती हिन्द महासागर में महत्वपूर्ण है।
- चीन भारत को अपने पक्ष में करके अमेरिका की “इंडो-पेसिफिक की अवधारणा” को समाप्त कर सकता है। हालांकि भारत खुद इस अवधारणा को मान्यता देता है।
- भारत विश्व का दूसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है जो बाजार की उपलब्धता को सुनिश्चित कर सकता है तथा आर्थिक मोर्चों पर दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
- वर्तमान में भारत के पास अमेरिका और चीन के बाद सबसे बड़ी सैन्य ताकत है अतः दोनों देश भारत को अपने साथ में लाना चाहेगे।
- भारत-चीन के मध्य स्थलीय सीमा विवाद भारत को अमेरिका के साथ जाने से रोकता है क्योंकि भारत अपनी स्थलीय सीमा पर शांति चाहता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका की “अमेरिका प्रथम की नीति” भारत के राष्ट्रीय हितों को नुकसान कर सकती है, अत: भारत पूर्णत अमेरिका के साथ जाने से बचेगा।

मध्यवर्ती शक्ति के रूप में जापान- जापान की महत्वाकांक्षायें-
- जापान स्वयं की रक्षा के लिए किसी देश पर निर्भर नहीं रहना चाहता, क्योंकि जापान इस बात को मानता है की अमेरिका पहले अपने हितों को साधना चाहेगा।
- जापान, चीन के साथ और अमेरिका के साथ रिश्तों को साथ लेकर चलना चाहता है जबकि अमेरिका का सहयोगी होने के नाते जापान चीन के साथ चाहकर भी अच्छे संबंध नहीं बना सकता। अत: जापान खुद की स्वतंत्र नीति का अनुसरण करना चाहेगा।
- जापान खुद को आने वाले समय में विश्व की स्थायी आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है।
- जापान अपनी आधुनिक तकनीक के कारण विश्व में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, अत: दोनों देश जापान को महत्वपूर्ण मानते है।
- जापान “साउथ-चाइना सी” में संयुक्त राज्य अमेरिका को प्रत्यक्ष फायदा पहुचा सकता है। अत: अमेरिका जापान को सीधे तौर पर लाभ देने से कभी नहीं चुकेगा।
- जापान की भौगोलिक स्थिति संपूर्ण प्रशांत महासागर की स्थिति पर नियंत्रण करने में सहायक सिद्ध होगी।
- वर्तमान में जापान अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका पर निर्भर है।
- जापान, चीन के साथ समुद्री क्षेत्र साझा करता है ना कि अमेरिका के साथ। अत: जापान चीन के साथ कभी भी सीधा समुद्र में टकराव नहीं चाहेगा।

मध्यवर्ती शक्ति के रूप में तुर्की- तुर्की की महत्वाकांक्षायें-
- तुर्की अपने पूर्ववर्ती “ओटोमन साम्राज्य” के स्वरूप को वापस पाना चाहता है और इसके लिए लगातार प्रयासरत है।
- तुर्की खुद को मुस्लिम जगत का प्रतिनिधित्व करने वाले देश के रूप में देखता है।
- तुर्की खुद को खाड़ी देशों में प्रभावशाली बनाये रखना चाहता है।
- तुर्की की भौगोलिक अवस्थिती संपूर्ण यूरोप को प्रभावित करती है तथा यूरोप के अधिकांश देश अमेरिका के सहयोगी है। अत: यूरोप के लिए अमेरिका तुर्की को साथ रखना चाहेगा।
- वर्तमान में भूमध्य सागर व काला सागर में तुर्की का शक्ति प्रदर्शन अमेरिका के साथ-साथ चीन को भी अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। अत: दोनों देश तुर्की पर नजर रखे हुए है।
- तुर्की एशिया के खाड़ी देशों में अपना प्रभाव रखता है।
- अमेरिका द्वारा तुर्की पर सीधे प्रतिबंध लगाए जाने की धमकी देना अमेरिका को नुकसान पहुचा सकती है।
- चीन द्वारा तुर्की की प्रत्यक्ष सहायता नहीं किया जाना तुर्की के लिए एक मुद्दा है।

मध्यवर्ती शक्ति के रूप में ईरान- ईरान की महत्वाकांक्षायें-
- ईरान, खाड़ी राष्ट्रों के साथ-साथ इजरायल को अपना प्रतिद्वंद्वी मानता है और उनसे मुकाबला करने के लिए परमाणु हथियार प्राप्त की ओर अग्रसर होना चाहता है।
- ईरान खुद को मुस्लिम जगत का प्रतिनिधित्व करने वाला देश मानता है।
- ईरान, अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाये गए प्रतिबंधों को अप्रभावी बनाना चाहता है।
- ईरान खाड़ी देशों की भौगोलिक स्थिति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
- ईरान मध्य एशिया के राष्ट्रों तक सीधी पहुंच का रास्ता प्रदान करता है।
- ईरान में ऊर्जा संसाधनों से भरपूर होने के कारण यह विश्व का ऊर्जा ग्रह बन सकता है।
- वर्तमान में अमेरिका द्वारा “ईरान परमाणु करार” से बाहर निकलना अमेरिका के हितों को सीधा नुकसान पहुचा रहा है।
- ईरान का भारत व चीन के साथ संबंधों का मजबूत होना चीन के साथ पूर्णत जाने से ईरान को रोकता है।

मध्यवर्ती शक्ति के रूप में रूस – रूस की महत्वाकांक्षायें-
- रूस, पूर्ववर्ती सोवियत संघ की खोयी हुई प्रतिष्ठता को पुन: प्राप्त करना चाहता है।
- वैश्विक राजनीति में होने वाले बदलावों में रूस खुद का स्थान तय करना चाहता है।
- रूस का पूर्ववर्ती “सोवियत संघ” का प्रतिनिधित्व करने वाली शक्ति के रूप में होना।
- रूस वर्तमान में संपूर्ण विश्व में सर्वाधिक परमाणु हथियार व उन्नत रक्षा तकनीक रखने वाला देश है।
- रूस का विस्तारित भौगोलिक क्षेत्रफल और ऊर्जा संसाधन अपना अलग से महत्व रखते है।
- अमेरिका के साथ ऐतिहासिक काल से चले आ रहे आपसी मतभेद रूस को अमेरिका के साथ कभी नहीं जाने देगे।
- वर्तमान में चीन का बढ़ता दब-दबा रूस के स्वयं के हितों को नुकसान कर रहा है। अत: रूस चीन का पूर्णत साथ देने से बचेगा।

निष्कर्ष- वर्तमान में शक्ति केन्द्रित विश्व व्यवस्था के नये रूप की स्थापना में मध्यवर्ती देशों का स्थान और महत्व लगातार बढ़ रहा है। इस व्यवस्था में “प्रभावी” देश के तौर पर भारत का स्थान भी महत्वपूर्ण है। द्वि या बहु-ध्रुवीय होती इस वैश्विक व्यवस्था में अब अर्थव्यवस्था के आकार, कठोर शक्ति, सौम्य और कूटनीतिक शक्ति, सरकार के कामकाज की गुणवत्ता और विशिष्टता के मानदंडों पर परखा जायेगा। अत: मध्यवर्ती देशों को और प्रयासरत रहना होगा।