Electoral Bond

Electoral Bond
सुर्ख़ियों में- Electoral Bond
  • हाल ही में गैर-सरकारी संगठन Association for Democratic Reforms (ADR) द्वारा चुनावी बॉन्ड (Electoral Bond) की बिक्री पर रोक लगाने हेतु उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की है जिसे उच्चतम न्यायालय ने तत्काल सुनवाई के लिए अपनी सहमति व्यक्त की है।
  • Association for Democratic Reforms की याचिका में तमिलनाडु व पश्चिम बंगाल राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले नए चुनावी बांड्स की बिक्री पर रोक लगाने की भी मांग की गई है।
  • याचिका में कहा ADR ने कहा है कि RBI और निर्वाचन आयोग ने पूर्व में कहा था कि “चुनावी बांडों की बिक्री, नकाबपोश कॉरपोरेशन और इकाईयों के लिए गैर-कानूनी धन प्राप्त आय को राजनीतिक दलों के पास जमा करने का एक जरिया बन गया है”।
चुनावी बॉन्ड (Electoral Bond)-
  • चुनावों में राजनीतिक दलों के चंदा जुटाने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से चुनावी बॉन्ड घोषणा की गयी थी। इनका जिक्र सर्वप्रथम केंद्र सरकार के वर्ष 2017 के आम बजट में किया गया था।
  • चुनावी बॉन्ड एक ऐसा बॉन्ड है जिसमें एक करेंसी नोट लिखा रहता है, जिसमें उसकी वैल्यू होती है। ये बॉन्ड पैसा दान करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
  • इस बॉन्ड के जरिए आम आदमी से लेकर नकाबपोश कॉरपोरेशन और अन्य निजी इकाईयां राजनीतिक पार्टी को पैसे दान कर सकते है।
चुनावी बॉन्ड (Electoral Bond) की कीमत-
  • न्यूनतम कीमत- 1 हजार रुपए
  • अधिकतम कीमत- 1 करोड़ रुपए
  • अर्थात ये चुनावी बॉन्ड 1 हजार, 10 हजार, 1 लाख, 10 लाख और 1 करोड़ रुपये के मूल्य में उपलब्ध होते हैं।
Note- इसके लिए अभी तक कोई कानूनन अधिकतम सीमा निर्धारित नहीं की गयी है। इसके बाद भी बैंक 1 करोड़ रुपये तक के ही बॉन्ड जारी करता है।
चुनावी बॉन्ड को जारी करने और खरीदने के संदर्भ में प्रावधान-
  • इन बॉन्डों को जारी करने और भुनाने के लिए ‘भारतीय स्टेट बैंक’ को अधिकृत किया गया है।
  • ये बांड, केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि में किसी भी व्यक्ति द्वारा खरीदे जा सकते है, बशर्ते उसे भारत का नागरिक होना चाहिए अथवा भारत में निगमित या स्थित होना चाहिए ।
  • कोई भी भारतीय नागरिक, संस्था या फिर कंपनी जब चुनावी बॉन्ड को खरीदती है तो बॉन्ड खरीदने के लिए Know Your Customer फॉर्म भरना होता है।
  • ये चुनावी बॉन्ड केवल “पंजीकृत राजनीतिक दल” के निर्दिष्ट खाते में प्रतिदेय होते हैं अर्थात केवल वे राजनीतिक दल ही चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के योग्य हैं जो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29(A) के तहत पंजीकृत हैं और जिन्होंने बीते आम चुनाव में कम-से-कम 1% मत प्राप्त किया है।
चुनावी बॉन्ड के संदर्भ में गोपनियता-
  • Electoral Bond को किसी राजनीतिक दल को देने वाले व्यक्ति, संस्था या फिर कंपनी जिसने बॉन्ड दिया है उसका नाम गुप्त रखा जाता व खरीदने वाले का भी नाम गुप्त रखा जाता है। लेकिन बैंक के पास बैंक खाते की जानकारी रहती है।
चुनावी बॉन्ड की समय सीमा-
  • एक Electoral Bond की समय सीमा 15 दिन की होती है और 15 दिन बाद यह बॉन्ड अप्रभावी हो जाता है।
  • इस बॉन्ड को राजनीतिक दलों को 15 दिन में दान किया जा सकता है उसके बाद नहीं क्योंकि यह बॉन्ड 15 दिन बाद यह बॉन्ड अप्रभावी हो जाता है।
  • चुनावी बॉन्ड से प्राप्त होने वाली राशि को हर पॉलिटिकल पार्टी चुनाव आयोग को बताती है कि बॉन्ड के जरिए उनके कितनी राशी मिली है।
चुनावी बॉण्ड से संबंधी उभरे विवाद और उनके कारण-
  • बॉन्ड कि गोपनियता संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) का उल्लंघन है जो मूल अधिकारों का हनन है क्योंकि इस व्यवस्था के तहत न तो फंड देने वाला के नाम की घोषणा की जाती है और न ही फंड लेने वाले के नाम की।
  • यह राजनीतिक वित्त में पारदर्शिता के मूल सिद्धांत की अवहेलना करता है।
  • बॉन्ड कि गोपनियता कॉरपोरेट्स की पहचान छिपाने में मदद करती है जो “घोर पूंजीवाद राजनीति” को बढ़ावा देती हैं।
  • सरकार इन की निगरानी कर सकती है क्योंकि चुनावी बॉण्ड केवल SBI के माध्यम से ही खरीदे जाते हैं।
  • चुनाव आयोग इन पर निगरानी नहीं कर सकता जो निष्पक्ष चुनाव में बाधा उत्पन्न करता है।
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