हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भारत द्वारा प्रायोजित एक प्रस्ताव को सर्वसम्मति से अपनाया है|
वर्ष 2023 को 70 से अधिक देशों ने मोटे अनाज का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष (International Year of Millets) घोषित किया है|
उद्देश्य- मोटे अनाज के जलवायु-लचीला और पोषण संबंधी लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और बढ़े हुए सतत उत्पादन और मोटे अनाज की खपत के माध्यम से विविध, संतुलित और स्वस्थ आहार की वकालत करने के लिए तत्काल आवश्यकता पर विचार करना|
मोटे अनाज के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष 2023 नामक प्रस्ताव को भारत द्वारा बांग्लादेश, केन्या, नेपाल, नाइजीरिया, रूस और सेनेगल के साथ शुरू की गई पहल थी और 70 से अधिक देशों द्वारा सह-प्रायोजित किया गया था|
वर्तमान में भारत, दुनिया में मोटे अनाजों का सबसे बड़ा उत्पादक है। अब देश के विभिन्न राज्यों में लोगों के मेनू में मोटे अनाजों को लाने के लिये कई कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे।
मोटा अनाज
भारत में 60 के दशक के पहले तक मोटे अनाज की खेती की परंपरा थी| कहा जाता है कि हमारे पूर्वज हजारों वर्षों से मोटे अनाज का उत्पादन कर रहे हैं| भारतीय हिंदू परंपरा में यजुर्वेद में मोटे अनाज का जिक्र मिलता है|
मोटे अनाज के तौर पर ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), जौ, कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, लघु धान्य या कुटकी, कांगनी जैसे अनाज शामिल हैं|
क्यों कहते हैं इसे मोटा अनाज
मोटा अनाज इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनके उत्पादन में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती व ये अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं व ये पर्यावरण के लिए भी बेहतर है|
ज्वार, बाजरा और रागी की खेती में धान के मुकाबले 30 फीसदी कम पानी की जरूरत होती है|
मोटे अनाज बारिश जलवायु परिवर्तन को भी सह जाती हैं व ये ज्यादा या कम बारिश से प्रभावित नहीं होते है|
सरकार का मोटे अनाज की खेती पर जोर-
केंद्र सरकार मोटे अनाज की खेती पर जोर दे रही है क्योंकि बढ़ती आबादी के लिए पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध करवाने में यही अनाज सक्षम हो सकते हैं|
केंद्र सरकार ने मोटे अनाज की खेती के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए साल 2018 को “मोटा अनाज वर्ष” के रूप में मनाया था|
छत्तीसगढ़ और ओडिशा के कुछ इलाकों में मोटा अनाज की खेती बढ़ी है|
दक्षिण भारत में मोटा अनाज का चलन बढ़ा है| आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा में रोज के खान-पान में मोटा अनाज को शामिल किया जा रहा है|