Uniform Civil Code

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Important for:-

1. RAS pre.

2. RAS Mains- Paper-III/Unit- I

सुर्ख़ियों में:-

  • हाल ही में उत्तराखंड राज्य सरकार ने उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने के मसौदे को तय करने के लिए गठित विशेषज्ञ समिति की बैठक की जानकारी साझा की है। इसके साथ ही उत्तरप्रदेश के डिप्टी सीएम ने उत्तर प्रदेश में शीघ्र समान नागरिक संहिता लागू किये जाने की बात कही है।
  • वर्तमान में समान नागरिक संहिता की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है जिस पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है, के बाद भी राज्य सरकारों द्वारा इसके सन्दर्भ में दिखाई जा रही अभिरुचि ने राज्य और न्यायपालिका में भी टकराव की स्थिति को जन्म दिया है।
  • हालांकि सुप्रीम कोर्ट में लम्बित याचिक पर केंद्र सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड का नीतिगत मसला बताते हुए कोर्ट को इस पर विचार न करने की बात कही है।
  • केंद्र सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड के सन्दर्भ में लॉ कमीशन को मामला सौंपे जाने की बात का भी उल्लेख किया है।

समान नागरिक संहिता:-

समान नागरिक संहिता का तात्पर्य:-

  • समान नागरिक संहिता अथवा समान आचार संहिता का अर्थ एक पंथनिरपेक्ष कानून होता है जो सभी पंथ के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है।
  • सामान्य अर्थो में समझे तो अलग-अलग पंथों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही ‘समान नागरिक संहिता’ है अर्थात सभी नागरिकों के लिए, एक धर्म-निरपेक्ष रूप से अर्थात धर्म को ध्यान में रखे बिना, तैयार किये गए शासकीय कानूनों का एक व्यापक समूह का होना है।

भारतीय संविधान और समान नागरिक संहिता:-

  • वर्ष 1840 में ब्रिटिश सरकार द्वारा “लेक्स लूसी रिपोर्ट” के आधार पर अपराधों, सबूतों और अनुबंधों के लिए एकसमान कानून का निर्माण किया गया था लेकिन उन्होंने जानबूझकर हिंदुओं और मुसलमानों के कुछ निजी कानूनों को छोड़ दिया था। जो आज की स्थिति के लिए एक हद तक जिम्मेदार है।
  • डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने संविधान सभा में एक समान नागरिक संहिता को अपनाकर समाज में सुधार करने की बात रखी थी, मगर धार्मिक रीति-रिवाजों पर आधारित निजी कानूनों को बनाए रखने के पक्षधर अल्पसंख्यक समुदायों के प्रतिनिधि भी थे। जिसके कारण संविधान सभा में समान नागरिक संहिता का अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा विरोध किया गया। जिस कारण संविधान सभा ने इस प्रावधान को नीति निदेशक तत्वों में रख दिया था।
  • समान नागरिक संहिता का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में है। भारतीय संविधान के भाग 4 में समान नागरिक कानून लागू करना राज्य का नीति निदेशक तत्व बताया गया है।
  • इसकी मूल भाषा निम्न है- अनुच्छेद-44. नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा
  • हालांकि इस भाग के किसी प्रावधान को लागू करना सरकार पर बाध्य नहीं है।

भारत में समान नागरिक संहिता की वर्तमान स्थिति:-

  • वर्तमान में गोवा में सभी धर्मों के लोगों के लिए, विवाह एवं उत्तराधिकार संबंधी मामलों में, ‘समान नागरिक संहिता’ लागू है।
  • गोवा भारत का एकमात्र राज्य है जो इसे लागू किये हुये है।
  • विधि और न्याय मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016 में समान नागरिक संहिता से संबंधित मुद्दों के समग्र अध्ययन हेतु एक आयोग का गठन किया गया था।
  • विधि और न्याय मंत्रालय द्वारागठित आयोग ने कहा था कि समान नागरिक संहिता का मुद्दा मूल अधिकारों के तहत अनुच्छेद 14 और 25 के बीच द्वंद्व से प्रभावित है।

समान नागरिक संहिता लागू करने के पक्ष में तर्क:-

  • समान नागरिक संहिता लागू होने से ‘विधि के समक्ष समता’ की अवधारणा के तहत सभी के साथ समानता का व्यवहार होगा।
  • वर्तमान में अलग-अलग धर्मों के अलग कानून से न्यायपालिका पर बोझ अधिक है। अत: समान नागरिक संहिता लागू होने से इस परेशानी से निजात मिलेगी और अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द होंगे।
  • सभी के लिए एक समान नागरिक संहिता से देश में एकता बढ़ेगी
  • समान नागरिक संहिता लागू होने से देश की राजनीति पर भी असर पड़ेगा और राजनीतिक दल वोट बैंक वाली राजनीति नहीं कर सकेंगे और वोटों का धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण नहीं होगा।
  • समान नागरिक संहिता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में भी सुधार आएगा क्योंकि अभी कुछ धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित हैं।
  • वर्तमान में देश में धार्मिक रुढ़ियों की वजह से समाज के कुछ समुदायों के अधिकारों का हनन होता है। अत: समान नागरिक संहिता लागू होने से अधिकारों का हनन कम होगा या नहीं के बराबर होगा।

समान नागरिक संहिता लागू करने के विपक्ष में तर्क:-

  • अल्पसंख्यक समुदाय समान नागरिक संहिता का विरोध करते हैं।
  • संविधान के अनुच्छेद-25 के तहत संविधान ने देश के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया है। इसलिये, सभी पर एक समान कानून थोपना संविधान के अनुच्छेद-25 के साथ खिलवाड़ करने के समान होगा।
  • कुछ लोग समान नागरिक संहिता विपक्ष में यह भी कहते है कि इससे देश की “विविधता में एकता” की अवधारणा को ठेस पहुचेगी

आगे की राह:-

  • आज के समय में बदलती परिस्थितियों के बीच सभी नागरिकों के मौलिक और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए समान नागरिक संहिता को लागू किया जाना चाहिए क्योंकि समान नागरिक संहिता द्वारा धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय अखंडता को भी मजबूत किया जा सकता है।
  • हालांकि सरकार अगर समान नागरिक संहिता को लागू करे तब देश के सभी समुदायों को विश्वास में लेने की आवश्यकता होगी ताकि किसी को अपने धार्मिक अधिकारों के हनन की स्थिति का सामना न करना पड़े।

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