☑Important for:-
1. RAS pre.
2. RAS Mains– Paper-III/Unit-I
हाल ही में पंजाब के अजनाला थाने पर हुए हमले के बाद भारत के पंजाब और उससे संलगन भागों में खालिस्तान समर्थन की मांग पुन: जोर पकड़ते नज़र आ रही है जो देश की एकता-अखंडता को के समक्ष एक बड़े खतरे के रूप में नजर आ रही है।
हाल ही में खालिस्तान समर्थकों और पंजाब पुलिस के मध्य हुई झडप के बीच ‘वारिस पंजाब दे’ प्रमुख अमृतपाल सिंह ने स्वयं को खालिस्तान समर्थक बताते हुए स्वयं को भारतीय नागरिक न होने का दावा करते हुए स्वयं की भारतीय नागरिकता पर प्रश्न चिह्न खड़ा किया है।
खालिस्तान आंदोलन-

- खालिस्तान अर्थात “ख़ालसे की सरज़मीन” जो भारत के पंजाब राज्य के सिख अलगाववादीयों द्वारा प्रस्तावित राष्ट्र को दिया गया नाम है।
- भारत में अंग्रेजी सत्ता की वापसी पंजाब के सभी सिखों के लिये एक समान नहीं थी क्योंकि विभाजन के बाद पंजाब के सिख समुदाय को दोहरे विभाजन का सामना करना पड़े जिसमें पंजाब क्षेत्र को भारत और पाकिस्तान के मध्य विभाजित कर दिया गया जिससे सिख समुदाय के लोग जो पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में निवासरत थे, ने अपने पुरखों की ज़मीन छोड़ कर भारतीय नागरिकता ग्रहण की जिससे सिखों के मन में एक असंतोष का भाव बना रहा।
- ख़ालिस्तान शब्द का जिक्र/उल्लेख पहली बार “ख़ालिस्तान” नामक एक पम्पलेट में वर्ष 1940 में किया गया था जिसे बाद में प्रवासी सिखों के द्वारा वित्तीयन, राजनीतिक समर्थन तथा पाकिस्तान की गुप्तचर संस्थानों के समर्थन ने ख़ालिस्तान की मांग को भारतीय पंजाब के क्षेत्र में बढ़ावा दिया तथा पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टों ने ख़ालिस्तान समर्थकों की ख़ालिस्तान राष्ट्र बनाने में मदद का आश्वासन भी प्रदान किया जिसकी अंतिम परिणाम “आपरेशन ब्लू स्टार” के रूप में देखने को मिला।
- हालांकि कुछ विचारक ख़ालिस्तान की उत्पति के विचार “आनंदपुर साहिब प्रस्ताव-1973“ में खोजते है। उस समय की शिरोमणि अकाली दल ने पंजाब के लिए मांगो की सूची पर पारित की थी जिसमें विदेशी, मुद्रा, रक्षा और संचार से संबंधित मामले केंद्र के पास हो बाकी मामले पंजाब की राज्य सरकार को देने की मांग की।
- वर्तमान में ख़ालिस्तान राष्ट्र के क्षेत्रीय दावे में मौजूदा भारतीय राज्यों में पंजाब, चण्डीगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और इसके इलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड इत्यादि राज्यों के भी कुछ क्षेत्र शामिल है।
- एक संप्रभु खालिस्तान के आह्वान की उत्पत्ति के बारे में दो अलग-अलग धारणा हैं-
- भारत के भीतर हुई घटनाओं की भूमिका-
- सिख डायस्पोरा की भूमिका-
1. भारत के भीतर हुई घटनाओं की भूमिका-
शिरोमणि अकाली दल- वर्ष 1920 में स्थापित शिरोमणि अकाली दल जो एक सिख राजनीतिक दल था, ने पंजाब में सरकार बनाने की मांग की और जिसकी अधिकतम राजनीति मांग एक संप्रभु राज्य की जबकि न्यूनतम राजनीतिक मांग भारत के भीतर एक स्वायत्त राज्य की थी।
शिरोमणि अकाली दल की इन राजनीतिक मांगों को को बाद में खालिस्तान के समर्थकों द्वारा एक अलग सिख देश के निर्माण के एक आधार के रूप में इस्तेमाल किया।
आनंदपुर साहिब प्रस्ताव-1973– उस समय की शिरोमणि अकाली दल ने पंजाब के लिए मांगो की सूची पर पारित की थी जिसमें विदेशी, मुद्रा, रक्षा और संचार से संबंधित मामले केंद्र के पास हो बाकी मामले पंजाब की राज्य सरकार को देने की मांग की।
सिख धर्म को हिंदू धर्म से अलग धर्म के रूप में मान्यता देने के साथ-साथ चंडीगढ़ और कुछ अन्य क्षेत्रों को पंजाब में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी। इसने यह भी मांग की कि केंद्र से राज्य सरकारों को सत्ता मौलिक रूप से हस्तांतरित की जाए।
संवैधानिक प्रावधान– अकाली दल ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25(2)(B) के स्पष्टीकरण (2) में “हिंदुओं के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत सिक्ख, जैन या बौद्ध धर्म के मानने वाले व्यक्तियों के प्रति निर्देश है और हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं के प्रति निर्देश का अर्थ तदनुसार लगाया जाएगा।“, का विरोध करते हुए सिक्ख धर्म को एक अलग धर्म के रूप में स्पष्ट रूप से मान्यता मिलनी चाहिए। इस खंड को भारत में कई धार्मिक अल्पसंख्यकों द्वारा संविधान के तहत धर्मों को अलग से मान्यता देने में विफल रहने के कारण अपमानजनक माना जाता है। अन्य घटनाएँ– इनके अलावाचंडीगढ़ को साझा राजधानी बनाये जाने, , रावी , ब्यास और सतलुज की नदियों के जल बटवारे को भी इसके आंतरिक कारणों के रूप में देखा जाता है।
2. सिख डायस्पोरा की भूमिका-
भारत के बाहर की घटनाओं के रूप में वर्ष 1971 के बाद खालिस्तान के एक संप्रभु और स्वतंत्र राज्य की धारणा उत्तरी अमेरिका और यूरोप में सिखों के बीच लोकप्रिय होने लगी।
भारतीय राजनेता जगजीत सिंह चौहान व दविंदर सिंह परमार ने खालिस्तान के समर्थन में अभियान चलाये थे, इनकी वजह से भारत में खालिस्तान राष्ट्र की मांग का प्रारम्भ हुआ।
खालिस्तान के बढ़ते प्रभाव का भारत पर प्रभाव-
- इससे भारत की क्षेत्रीय सम्प्रभुता/एकता-अखंडता को खतरा उत्पन्न होगा।
- पंजाब में उससे संलगन क्षेत्रों में आंतरिक अशांति और अपराधों को बढ़ावा मिलेगा जिससे आमजन को समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
- केन्द्रीय स्तर पर सुरक्षा एजेंसियों और राज्य स्तर पर पुलिस प्रशासन को अतिरिक्त कार्य करने पड़ेगे।
- खालिस्तान समर्थकों के विदेशों में सम्बन्ध भारत की विदेश नीति प्रभावित क्र सकते है।
- खालिस्तान-पाकिस्तान गठजोड़ भारत के पश्चमी सीमा क्षेत्रों में आतंकवाद को बढ़ावा दे सकता है।
- खालिस्तान की बढती विचारधारा पंजाब के आम लोगों में अलगाव की भावना को जन्म दे सकती है।
खालिस्तान के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाये जाने वाले कदम-
- हाल ही में पंजाब में हुई घटना पर सरकार को त्वरित कारवाई के साथ-साथ सख्ती को दिखाना चाहिए ताकि इन घटनाओं के खिलाफ प्रतिरोध दर्शाया जा सके।
- खालिस्तान समर्थकों के भारत विरोधी विदेशी संगठनों से संबंधों का पता लगाकर उनके खिलाफ कारवाई की जानी चाहिए।
- भारत की एकता-अखंडता के विरोधी लोगों के खिलाफ इंटरपोल से रेड नोटिस जारी करवाकर उनकों गिरफ्तार करने की आवश्यकता है।
ऑपरेशन ब्लूस्टार

- कब– 1- 8 जून, 1984 को
- कहाँ– स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
क्यों/उद्देश्य– खालिस्तान’ आंदोलन के हिंसक रूप व जरनैल सिंह भिंडरावाले की देश विरोधी गतिविधियों का समाप्त करना|
परिणाम-
- पंजाब में खालिस्तान की मांग के उन्मूलन को बढ़ावा मिला|
- देश विरोधी गतिविधियों में सम्मिलित भिंडरावाले को खत्म किया गया|
- पंजाब में हुई आम नागरिकों की मृत्यु के परिणामस्वरूप सिख समुदाय के बड़े हिस्से में भारत विरोधी भावनाएं तेज हुई। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या इसका परिणाम थी।
- सिखों डायस्पोरा के मन में भारत विरोधी भावनाएँ प्रबल हुई।
- पंजाब में हो रहीं आतंकी घटनाएँ रोकने में सफलता मिली।