हाल ही उत्तराखंड में हुई वनाग्नि ने देश में बारम्बार होने वाली वनाग्नियों के संदर्भ में सरकार के द्वारा उठाये गए कदमों पर चिंता जाहिर की है।
वर्ष 2021 की शुरुआत में हिमाचल प्रदेश, नगालैंड-मणिपुर सीमावर्ती क्षेत्रों के वन्यजीव अभयारण्यों में हुई ‘वनाग्नि’ के कारण पर्यावरणवादी वर्तमान में बहुत चिंतित नजर आ रहे है।
भारत में वनाग्नि से प्रभावित वनक्षेत्र-
वर्तमान के आकड़ों के अनुसार देश में वनाग्नि के प्रति ‘अत्यधिक प्रवण’ तथा ‘मध्यम प्रवण’ श्रेणियों के अंतर्गत, कुल वन आवरण क्षेत्र का 26.2%(1,72,374 वर्ग किमी) क्षेत्र आता है।
भारत में वनाग्नि की पूर्व की घटनाओं और रिकॉर्डों के आधार पर यह पाया गया कि पूर्वोत्तर तथा मध्य भारत के जंगल वनाग्नि के प्रति ज़्यादा सुभेद्य हैं। वनाग्नि से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले जंगलों के रूप में असम, मिज़ोरम और त्रिपुरा के जंगलों की पहचान गई।
अत्यधिक प्रवण श्रेणी के अंतर्गत बड़े वन क्षेत्र वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।
वनाग्नि
वनाग्नि का तात्पर्य-
वनाग्नि को जंगल की आग या बुशफायर कहा जाता है।
जंगल की आग या बुशफायर का तात्पर्य किसी कारणवश(मानवीय कारण या प्राकृतिक कारण) जंगल या घास के मैदान के अनियंत्रित तरीके से जलने की प्रक्रिया को कहा जाता है।
बुशफायर पर्यावरण और मानव के साथ-साथ सम्पूर्ण धरती के लिए घातक सिद्ध होती है।
वनाग्नि के कारण-
भारत में गर्मियों में वनाग्नि की सबसे अधिक घटनाएँ घटित होती हैं क्योंकि इस समय जंगलों में सूखी लकडियाँ, पत्तियाँ, घास और खरपतवार जैसे आग को बढ़ावा देने वाले घटक मौजूद होते हैं।
वर्तमान में देश के ज़्यादातर हिस्सों की मृदा में आर्द्रता की कमी के कारण वनाग्नि की तीव्रता बढ़ जाती है।
वर्तमान में वर्षा के बदलते प्रतिरूपों के कारण वर्षा की मात्रा में आयी कमी भी वनाग्नि का कारण है।
तीव्रता से होते बज्रपात(बिजली गिरना) जंगलों में आग का प्रमुख कारण है।
अनेक मानवीय कारण, जैसे लौ, सिगरेट, विद्युत् की चिंगारी या किसी प्रकार का दहन भी जंगल में आग लगने का कारण बन जाता है।
कुछ मामलों में जंगल में काम कर रहे मजदूरों, वहाँ से गुजरने वाले लोगों या चरवाहों द्वारा गलती से जलती हुई कोई चीज वहाँ छोड़ दिया जाना भी एक कारण है।
झूम खेती और वन उत्पादों संबंधी मांग में वृद्धि ने मानव को वनों को साफ करने को प्रोत्साहित किया है जैसे- अमेज़न के जंगलों में लगी आग।
लीसा दोहन करने के लिये वन विभाग के कर्माचारियों द्वारा पेड़ों पर लगाया गया गहरा चीरा भी जंगलों में आग का कारण है क्योंकि लीसा के अत्यधिक ज्वलनशील होने की वजह से जंगल में आग लग जाती है।
कुछ शोधों में जंगलों की आग को सुनियोजित पाया गया है। भू-माफिया आग की वजह से नष्ट हो चुके जंगलों में वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों की सहायता से कब्जा जमा लेते हैं। कुछ ही दिनों बाद इन खाली पड़ी जमीनों पर महंगे रेस्टोरेंट और रिसॉर्ट बना लेते हैं।
वनाग्नि के प्रभाव या नुकसान-
जंगल में आग से होने वाले नुकसान का आकलन करना वर्तमान वन-विज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण भाग बनता जा रहा है और इस सम्बन्ध में विस्तृत अध्ययन की जरूरत महसूस की जा रही है। हालिया शोधों में जंगल की आग से होने वाले नुकसानों को निम्न प्रकार से उल्लेखित किया गया है-
वनाग्नि से आदिवासियों और ग्रामीण गरीबों की आजीविका को नुकसान पहुँचता है। आँकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 300 मिलियन लोग अपनी आजीविका के लिये वन उत्पादों के संग्रह पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर हैं।
वनाग्नि से वन आवरण को सर्वाधिक नुकसान होता है।
वनाग्नि से मिट्टी की उर्वरता में कुछ समय बाद कमी आ जाती है इससे मिट्टी बंजर हो जाती है।
वनाग्नि से पौधों के विकास, जीवों आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं और जैव-विविधता में कमी आती है।
वनाग्नि से जंगली जानवरों के आवास नष्ट हो जाते है और जंगली जानवर मानव आवासों में आ जाते है इससे मानव-वन्यजीवों के मध्य संघर्ष बढ़ता है।
वनाग्नि से मिट्टी की नमी प्रभावित होती है जिससे फसलों को पर्याप्त नमी नहीं मिलती और उत्पादन कम हो जाता है।
वनाग्नि से वनों का आकार सिकुड़ सकता है और वन परिदर्शय में कमी आती है।
आग से बचे हुए पेड़ अक्सर अस्त-व्यस्त हो जाते हैं और ये आग के बाद खुद का अस्तित्व नहीं बनाये रख सकते।
वनाग्नि को कम करने या रोकने के उपाय-
वनों में अनियंत्रित पर्यटन को बढ़ावा देने की बजाय नियंत्रित पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिये।
गर्मियों में आग पर निगरानी रखने के लिए पर्याप्त संख्या में कर्मचारी नियुक्त किए जाने चाहिए।
सीमित मात्रा में घास-फूस जलाने की सीमा रेखा का स्पष्ट रेखांकन होना चाहिये।
वन विभाग के कर्मचारियों को वायरलैस के जरिए संचार के बेहतर साधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए ताकि वे जंगल की आग से निपटने और अनधिकृत रूप से पेड़ों को काटने के खिलाफ तुरन्त कार्रवाही कर सकें।
आग जलाने के काम को नियन्त्रित किया जाना चाहिए जिससे जंगल में पेड़ से गिरी चीड़ के पेड़ की पत्तियाँ इकट्ठी न होने पाएँ।
चीड़ की सुई जैसी पत्तियों के वैकल्पिक प्रयोग को सरकार द्वारा बढ़ावा दिया जाए। इससे जंगल में इन ज्वलनशील पत्तियों के फैलाव को रोकने में मदद मिलेगी।
आस-पास के गाँवों के लोगों का जंगल से लकड़ी लेने का उनका अधिकार को बनाए रखा जाए और उनके दुर्भावना वाले व्यवहार में कमी लायी जाये।
राज्य सरकारें वनों की देखभाल और उनके संरक्षण के लिए वन विभाग को पर्याप्त धन उपलब्ध कराये।
सरकार द्वारा वनाग्नि को कम करने के किये गये प्रयास-
Forest Fire Alert System- Forest Survey of India ने वर्ष 2004 के बाद से सही समय पर जंगल की आग की निगरानी के लिये फॉरेस्ट फायर अलर्ट सिस्टम विकसित किया है। वर्ष 2019 में इस सिस्टम का उन्नत संस्करण लॉन्च किया गया था जो नासा और इसरो से एकत्रित उपग्रह जानकारियों का उपयोग करता है।
सरकार द्वारा घोषित वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action Plan on Forest Fire), 2018 और वनाग्नि निवारण तथा प्रबंधन योजना एक सराहनीय प्रयास है।
निष्कर्ष-
आग से वनों को बचाने की व्यवस्था पूरे देश में बहुत नाजुक स्थिति में है। यह जानकर आश्चर्य होगा कि ज्यादातर राज्यों में इस तरह की आग से बचाव या उस पर नियन्त्रण के लिए कोई नियमित योजना नहीं है।
भूमि के अनियन्त्रित ह्रास और भूमि के दूसरे कामों में बढ़ते उपयोग, आदमी की बढ़ती जरूरतों, कृषि के विस्तार और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाली प्रबन्ध तकनीक से दुनिया भर के वनों के लिए खतरा पैदा हो गया है। अत: विभिन्न देशों की सरकारों को इस विषय में कठोर नीतिगत नियमों को अपनाना चाहिये और कानून बनाना चाहिये।