सुर्ख़ियों में- US Patrol in India’s EEZ Region
- हाल ही में अमेरिकी नौसेना के सातवें बेड़े ने भारत के ‘विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र’ में भारत की पूर्व सहमति के बिना ‘फ्रीडम ऑफ़ नैविगेशन ऑपरेशन’ (FONOP) को अंजाम दिया है।
- संयुक्त राज्य अमेरिकी की नौसेना के इस कदम के बाद भारत-संयुक्त राज्य अमेरिका के रिश्तों में तल्खी बढ़ गयी है व भारत ने अमेरिका के समक्ष अपनी आपति दर्ज करवाई है और कहा है की यह भारत के समुद्री अधिकारों का उल्लंघन है।
- अमेरिका ने भारत की इस आपति को खारिज करते हुए कहा है कि भारत के समुद्री कानून, United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS के अनुरूप नहीं है।


United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS

- संयुक्त राष्ट्र का “संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि(United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS)” एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। वर्तमान में यह कन्वेंशन समुद्र के कानून से संबंधित सभी मामलों से संबंधित विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त कन्वेंशन है।
- संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि को 10 दिसंबर 1982 को जमैका में हस्ताक्षर के लिए रखा गया था जो 16 नवंबर 1994 को लागू हुई थी।
- वर्तमान में इस संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि को 168 देश अपना चुके है।
- भारत ने जून 1995 में संयुक्त राष्ट्र की अन्तरराष्ट्रीय समुद्री कानून संधि पर हस्ताक्षर किए और साथ ही इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी और कमीशन ऑन द लिमिट्स ऑफ कांटीनेंटल शेल्फ में भी शामिल हुआ था।
- संयुक्त राज्य अमेरिका इस संधि का पक्षकार नहीं है। अत: अमेरिका इस संधि के प्रावधानों को नकारता है।
- इस संधि का उद्देश्य विश्व के सागरों और महासागरों पर देशों के अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ को निर्धारित करना है और समुद्री साधनों के प्रयोगों के लिए नियम भी स्थापित करना है।


- अंदरूनी जल- यह किसी देश की स्थलीय सीमा के अंतर्गत आने वाले जलाशय तथा नदियों को सम्बोधित करती हैं। इन पर राष्ट्र अपनी इच्छा से नियम बना सकते हैं। किसी अन्य राष्ट्र की नौका को इनमें घुसने का या इनका प्रयोग करने का कोई अधिकार नहीं है।
- क्षेत्रीय जल- किसी राष्ट्र के तट से 12 समुद्री मील के भीतर का क्षेत्र उस राष्ट्र का क्षेत्र माना जाता है। इसमें वह राष्ट्र अपने क़ानून बना सकता है और जिस साधन का जैसे चाहे प्रयोग कर सकता है। यह उसका सम्प्रभू क्षेत्र है।
- निकटवर्ती क्षेत्र- क्षेत्रीय जल से और 12 समुद्री मील आगे तक (यानि तट से 24 समुद्री मील आगे तक) राष्ट्रों को अधिकार है के वे चार पहलुओं पर अपने क़ानून लागू कर सकें – प्रदूषण, कर (लगान), सीमाशुल्क और अप्रवासन (इम्मीग्रेशन)।
- अनन्य आर्थिक क्षेत्र- राष्ट्र के तट अर्थात बेसलाइन से 200 समुद्री मील बाहर के क्षेत्र में केवल उसी राष्ट्र का साधनों पर आर्थिक अधिकार है, चाहे वह समुद्र के फ़र्श से या उसके नीचे से तेल या अन्य साधन निकालना हो।
- हाल ही में अमेरिका का युद्धपोत जहाज “यूएसएस जॉन पॉल जोन्स” भारतीय समुद्री सीमा के तहत आनेवाले स्पेशल इकनॉमिक जोन की सीमा में बिना इजाजत के घुस गया था जिसका भारत ने विरोध दर्ज करवाया है।
- यूएसएस जॉन पॉल जोन्स- एक अमेरिकी युद्ध पोत है जो अर्ली बर्क एंटी मिसाइल सिस्टम से लैस है। यह जहाज अमेरिकी नेवी के वाइस एडमिरल के कमांड के तहत आनेवाला डिस्ट्रॉयर स्क्वाड्रन 23 का हिस्सा है।
- अमेरिका ने हाल ही में जारी बयान में कहा है कि यह एक ‘नौवहन स्वतंत्रता कार्यवाही’ है। नौवहन स्वतंत्रता कार्यवाही के तहत अमेरिकी नौसेना विश्व भर में अपने नौपरिवहन अधिकारों और स्वतंत्रताओं को आगे बढ़ाने तथा इस्तेमाल करने के लिए तटवर्ती देशों के विशेष आर्थिक क्षेत्र में जल मार्ग को बनाने का प्रयास करती है।
- भारत का ‘विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र’ पर दावा अंतर्राष्ट्रीय कानून (संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि, 1982) के खिलाफ है।
- अमेरिकी सरकार ने कहा कि अमेरिकी सेना दैनिक आधार पर हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में काम करती हैं। ऐसे सभी ऑपरेशन अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार किये जाते हैं।
- अमेरिका के अनुसार इस कार्यवाही ने अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून के अंतर्गत मान्यता प्राप्त समुद्री अधिकारों, स्वतंत्रता और समुद्र के वैध उपयोग को इस्तेमाल करने के अधिकार को बढ़ावा दिया है।

घटना के विषय में भारत का विरोध-
- अमेरिका की यह कार्यवाही भारतीय कानून प्रादेशिक जल, महाद्वीपीय शेल्फ, विशेष आर्थिक क्षेत्र और अन्य समुद्री क्षेत्र अधिनियम-1976 का उल्लंघन है।
- भारत के अनुसार United Nations Convention on the Law of the Sea अन्य देशों को किसी देश की सहमति के बिना उसके ‘विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र’ क्षेत्र में और महाद्वीपीय शेल्फ में सैन्य अभ्यास या युद्धाभ्यास करने का अधिकार नहीं देता है।
- अमेरिका द्वारा इस घटना को ऐसे वक्त अंजाम दिया गया है जब हिन्द महासागर में हाल ही में यूएस, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर जटिल समुद्री अभ्यास की पहल में हिस्सा लिया है। इसे क्वाड्रिलेटरल सिक्युरिटी डायलॉग या क्वाड के नाम से भी जाना जाता है।
- इस घटना से साफ होता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका अन्य देशों के समुद्री दावों को स्वीकार नहीं करता है और विभिन्न देशों द्वारा किए गए दावों को अंतर्राष्ट्रीय कानून में स्वीकार किए जाने से रोकता है। अर्थात अमेरिका किसी देश के हितों को मान्यता नहीं देता। अत: भारत को अमेरिका के साथ रिश्तों में तल्खी बढ़ सकती है।
- अमेरिका द्वारा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के खिलाफ एक ‘विश्वसनीय निवारण’ तैयार करने हेतु देशों के समूह को एक साथ लाने की योजना को हालिया घटना से झटका लग सकता है।
- भारत-अमेरिका के मध्य वर्तमान में स्थापित सामरिक संबंधों में कड़वाहट बढ़ सकती है।
- चीन अब इस क्षेत्र में अपने युद्धपोतों को भेज सकता है, इसका एक आधार हाल ही में अमेरिका के द्वारा जारी वक्तव्य हो सकता है। इससे भारत के समुद्री सुरक्षा में नयी समस्यायें उत्पन्न हो सकती है।
- वर्तमान में अमेरिका की इस एक तरफा कारवाई नें भारत-अमेरिका के रिश्तों में संशय पैदा कर दिया है जो वर्तमान में चीन के बढ़ते वैश्विक प्रभाव को रोकने में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के लिए अमेरिका के साथ बने सामरिक संबंधों को कमजोर करेगे।
- इस संदर्भ में भारत को कड़े कदम उठाने चाहिये क्योंकि अमेरिका की इस घटना ने भारत के ‘विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र’ में बिना इजाजत के घुसकर भारत के इस विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र को विवादित बना दिया है। जो अब अन्य देशों के लिए भी नयी संकल्पना उत्पन्न करेगा और भारत के समुद्रीक क्षेत्रों में चीन और अन्य शक्तिशाली देशों के साथ विवाद को उत्पन्न कर सकता है।